Tuesday, October 13, 2015

         बदलते मौसम के साथ हल्की हल्की ठंड लपेटे जब वातावरण ले रहा होता है करवटें,तभी कहीं दस्तक देती है एक दावत, उस उल्लास भरे त्यौहार को जो अपने नाम को साकार करता,चार अक्षर का एक शब्द चारों दिशाओं को समेटे दसों दिशाओं को कर देता है हरा भरा,दशहरा,शक्ति पर्व,विजय पर्व,उल्लास पर्व अनेक परम्पराओं और मान्यताओं को साथ लिए बन जाता है राष्ट्रीय एकता का महापर्व उत्साह भरा दशहरा...
·         "मातः, दशभुजा, विश्वज्योति; मैं हूँ आश्रित;
हो विद्ध शक्ति से है खल महिषासुर मर्दित;
जनरंजन-चरण-कमल-तल, धन्य सिंह गर्जित!
यह, यह मेरा प्रतीक मातः समझा इंगित,
मैं सिंह, इसी भाव से करूँगा अभिनन्दित।"
·         "साधु, साधु, साधक धीर, धर्म-धन धन्य राम!"
कह, लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम।
"
होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन।"
कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।

       आइए चलें अतीत के उस गौरवशाली युग की ओर जहाँ का कालखण्ड इस महापर्व का साक्षी बना... सतयुग बीतने के बाद बारी थी त्रेता युग की... वो काल खण्ड जिसमें मर्यादा पुरूषोत्तम की जीवन गाथा ने आने वाले युगों को प्रभावित कर जो अमिट छाप छोड़ी दशहरा उसी का पावन प्रतीक है... राम रावण युद्ध की निर्णायक वेला में इस पर्व के बीज पड़ते हैं जब अनेक प्रयासों के बाद भी विजय पताका राम सेना की पहुँच से दूर बनी हुई थी।...... ऐसे में श्रीराम ने की शक्ति की आराधना जिसका वर्णन बड़े ही प्रभावशाली तरीक़े से महाकवि सूर्यकांत “त्रिपाठी निराला” ने किया है राम की शक्ति पूजा में।

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